भारत के इतिहास के पन्नों को पलटा जाये, तो कई ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों का नाम दिखाई पड़ता है,जिन्होंने भारत की आजादी के लिए महत्वपूर्ण कार्य किये है। उन्हीं में से एक थे, बाल गंगाधर तिलक, जिन्हें भारतीय राष्ट्रवाद का भगीरथ कहा जाता है। वे एक महान पत्रकार, शिक्षक, जननायक, और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतन को एक नया मोड़ देकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को देश के स्वाधीनता संघर्ष के लिए आमूल परिवर्तनवादी कार्यक्रम अपनाने के लिए विवश कर दिया। इस तरह उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में अपना अमूल्य योगदान दिया। एक सजग पत्रकार के नाते उन्होंने दो साप्ताहिक पत्र निकाले: मराठी में ‘केसरी’ और अंग्रेजी में ‘मराठा’। ‘केसरी’ में उन्होंने जो विचारोत्तेजक लेख और संपादकीय लिखे तथा विविध अवसरों पर जो ओजस्वी भाषण दिए, वे उनके राजनीतिक विचारों की मुख्य स्त्रोत सामग्री है। ‘गीता रहस्य’ उनकी धार्मिक कृति है जिसमें ‘कर्मयोग’ तथा अन्याय के विरुद्ध संघर्ष का प्रेरणादायक संदेश निहित है। उन्हें महात्मा गांधी द्वारा “आधुनिक भारत का निर्माता” करार दिया गया था। वे एक महान विद्वान व्यक्ति थे, जिनका मानना था कि आजादी एक राष्ट्र के कल्याण के लिए सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है। वह “लाल बाल पाल” तिकड़ी के तीन सदस्यों में से एक थे। बाल गंगाधर तिलक, भारतीय चेतना में एक मजबूत कट्टरपंथी थे और स्वराज अर्थात् स्व-शासन के पहले और सबसे मजबूत नेता थे।
बाल गंगाधर तिलक, का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के चिखली गांव में एक मराठी हिंदू चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री गंगाधर तिलक और माता का नाम पार्वती बाई गंगाधर था। महज 16 वर्ष की अल्प आयु में सत्यभामा तिलक से विवाह सम्पन्न हुआ। विवाहोपरांत इन्हे रामभाऊ बलवंत तिलक, विश्वनाथ बलवंत तिलक और श्रीधर बलवंत तिलक के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले विचारक और नेता थे। तिलक ने ‘स्वराज्य अर्जुन’ और ‘केशरी’ जैसी पत्रिकाएं संपादित की थीं जिन्होंने जनमत जागरूकता फैलाने में मदद की। उन्होंने स्वराज मोहीम की शुरुआत की थी, जिसने बाद में गांधीजी के सत्याग्रह के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तिलक को ‘लोकमान्य’ के नाम से पुकारा जाता था। उनकी विचारधारा और गतिविधियां भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण रही।
तिलक की प्रारंभिक शिक्षा में दिलचस्पी नहीं थी और उन्होंने जलगांव और पुणे के विद्यार्थी जीवन में अपने प्राधिकरणों को निभाना शुरू किया। उन्होंने बाद में पुणे के फर्गुसन कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की।
तिलक को विद्यार्थी जीवन में ही राजनीतिक क्रियाओं में जुड़ने की रुचि थी और उन्होंने देशभक्ति और समाज सुधार के मुद्दों पर काम किया। उनके प्रारंभिक जीवन ने उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में उभारा जिसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बचपन से ही पढ़ाई में मेधावी रहे तिलक ने 1879 में बी.ए. तथा कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की, स्नातक करने के बाद बाल गंगाधर तिलक ने पुणे के एक निजी स्कूल में गणित पढ़ाना शुरू किया।1880 में, उन्होंने गोपाल गणेश अगरकर, महादेव बल्लाल नामजोशी और विष्णुशास्त्री चिपलूनकर सहित अपने कुछ कॉलेज के साथियों के साथ मिलकर माध्यमिक शिक्षा के लिए न्यू इंग्लिश स्कूल की स्थापना की। उनका मिशन भारत के युवाओं के शैक्षिक स्तर को बढ़ाना था।स्कूल की सफलता ने उन्हें 1884 में डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना करने के लिए प्रेरित किया, ताकि एक राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली शुरू की जा सके, जिसमें युवा भारतीयों को भारतीय संस्कृति पर जोर देते हुए राष्ट्रवादी विचारों की शिक्षा को मजबूत बनाया जाय। तिलक ने 1890 में डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी छोड़ दी और खुले तौर पर राजनीतिक कार्य करने लगे।
अंग्रेज़ों के खिलाफ की पत्रिकारिता
बाल गंगाधर तिलक ने अंग्रेज़ों के खिलाफ पत्रिकारिता की और अपनी पत्रिका “केशरी” के माध्यम से राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर विचारधारा फैलाई। उन्होंने यह पत्रिका 1881 में मराठी भाषा में शुरू की थी। इसमें वे भारतीय स्वराज, राष्ट्रीय एकता और स्वदेशी आन्दोलन के मुद्दे पर चर्चा करते थे।
तिलक की पत्रिका “केशरी” ने अंग्रेज़ शासन के खिलाफ उठी हुई आवाज़ को जन जन तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को प्रोत्साहित किया। तिलक ने स्वदेशी आन्दोलन की प्रेरणा देने वाले लेखों, संवादों और राष्ट्रीयता को भरने वाले नारों के माध्यम से लोगों को जागरूक किया था। उनकी पत्रिका ने भारतीय जनता के बीच राष्ट्रीय भावना और एकता को मजबूती से फैलाया था।
सामाजिक सेवा और गणेशोत्सव
उन्होंने बम्बई में अकाल और पुणे में प्लेग के समय काफी सामाजिक कार्य किया। 1893 ईस्वी में उन्होंने गणेशोत्सव मानाने का सोचा। तिलक का विचार था कि, गणेश जी को घर से निकाल कर सामाजिक तौर पर गणेश उत्सव का आयोजन किया जाए। इस तरह सभी जाती के लोग त्यौहार एक साथ मना सकेंगे।
बाल गंगाधर तिलक ने समाज सेवा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने जनसंख्या वृद्धि, शिक्षा, महिला शिक्षा, और विधवा विवाह के प्रसंगों पर जागरूकता फैलाई और समाज के निम्नवर्ग के लोगों की समृद्धि के लिए काम किया।
क्रान्तिकारियों की पैरवी
बाल गंगाधर तिलक ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले क्रांतिकारियों की पैरवी की और उन्हें समर्थन दिया। उन्होंने राष्ट्रीय स्वतंत्रता के प्रचार-प्रसार के लिए विभिन्न क्रांतिकारियों के संघर्षों के प्रशंसा की और उनके योगदान को अपनी पत्रिका “केशरी” में प्रकाशित किया।
तिलक ने राजगुरु, सावरकर, जैसे महान क्रांतिकारियों का साथ दिया और उन्हें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेता और विचारक के रूप में प्रोत्साहित किया। उनके द्वारा संगठित की गई “महाराष्ट्र आन्दोलन” ने नायकों और क्रांतिकारियों को सम्मानित किया और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
तिलक ने स्वराज मोहीम को प्रोत्साहित किया, जिसमें उन्होंने देश के लोगों को राजद्रोह के विरुद्ध विशाल आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने संगठन में किए गए समाज सुधारक कार्यक्रमों को भी समर्थन दिया, जिससे देशवासियों के जीवन में सुधार हुआ और उन्हें स्वदेशी आन्दोलन के पक्ष में उत्साहित किया। तिलक ने भारतीय स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए समूचे देश के क्रांतिकारियों के संघर्ष में अपना योगदान दिया और राष्ट्रीय एकता को मजबूती से बढ़ाया। वें गरम दल के नेता थे, और इनके समर्थन में लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल भी थे।
बर्मा का मांडला जेल
1908 में तिलक ने क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया, जिसकी वजह से उन्हें बर्मा अर्थात आधुनिक म्यांमार के जेल में भेज दिया गया। जेल से छूटकर वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। जेल में तिलक न तो किताबें पढ़ सकते थे और न ही किसी को पत्र लिख सकते थे। उन्होंने जेल में “गीता रहस्य” नाम की एक किताब लिखी जो काफी प्रसिद्ध हुई। उन्हें अपनी पत्नी के अंतिम दर्शन करने की इज़ाज़त तक नहीं मिली थी।
आल इंडिया होम रूल लीग
बाल गंगाधर तिलक ने 1905 में आल इंडिया होम रूल लीग की स्थापना की थी। यह एक प्रभावशाली राष्ट्रीय संगठन था। जिसका उद्देश्य भारतीय स्वराज को प्राप्त करना था। इस संगठन का मुख्य लक्ष्य ब्रिटिश राज सरकार से भारतीयों को राजनीतिक नियंत्रण प्रदान करने और राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करना था।
आल इंडिया होम रूल लीग का मूल मंत्र “स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे” था। इस संगठन के द्वारा भारतीयों को स्वतंत्रता के लिए सामाजिक एवं राजनीतिक जागरूकता प्रदान की गई और उन्हें अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया गया। इस संगठन ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता की मांग को बढ़ावा दिया और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के उदय को प्रस्तुत किया।
1920 में निधन हुआ
बाल गंगाधर तिलक का निधन 1 अगस्त 1920 को गणेश चतुर्थी के उत्सव के दौरान हुआ था। उनकी मृत्यु ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को भारी क्षति पहुंचाया और देशवासियों में अद्भुत शोक उत्पन्न किया। उनके निधन से राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में भारतीय जनता के द्वारा विभाजित विचारों और भावनाओं को एकत्रित करने का काम रुक गया था, लेकिन उनकी विचारधारा और योगदान ने देशवासियों के हृदय में चिरस्थायी प्रभाव छोड़ दिया। उन्हें “लोकमान्य” के नाम से पुकारा जाता है और उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में अमूल्य है।
निष्कर्षतः कभी-कभी तिलक पर यह आरोप भी लगाया जाता है कि उन्होंने भारतीय राष्ट्रवाद, और हिंदू राष्ट्रवाद को मिला दिया। और साथ ही गणपति तथा शिवाजी उत्सव आयोजित करके हिंदुत्व को बढ़ावा दिया। परंतु यह नहीं भूलना चाहिए कि उन्होंने राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने के लिए ये उत्सव आयोजित किए। उन्होंने मुस्लिम या किसी अन्य संप्रदाय के प्रति वैमनस्य का परिचय कभी नहीं दिया। वास्तव में वे यह चाहते थे कि राष्ट्रीय हित में हिंदुओं और मुसलमानों को कंधे से कंधा मिलाकर काम करना चाहिए। उनका विश्वास था कि हिंदुओं का बुद्धिबल और मुसलमानों का शौर्य जब एक साथ मिल जाएंगे तब वे ब्रिटिश अधिकारितंत्र को तहस-नहस कर देंगे। सन् 1920 में तिलक ने मुसलमानों के खिलाफ़त आंदोलन को पूरा समर्थन देने की पेशकश की। तिलक उग्रपंथी अवश्य थे, परंतु उन्होंने स्वराज – प्राप्ति के लिए हिंसा की वकालत कभी नहीं की। उन्होंने क्रांतिकारियों की सराहना अवश्य की, परंतु जनशक्ति को जागृत और गतिमान करने के लिए उन्होंने निष्क्रिय प्रतिरोध का समर्थन किया। वे ब्रिटिश आर्थिक हितों को क्षति पहुँचाकर और ब्रिटिश शासन-तंत्र में रोड़े अटकाकर अंग्रेजों को यहां से प्रस्थान करने के लिए विवश करना चाहते थे। उन्होंने राजनीतिक हत्याओं या आतंकवादी गतिविधियों का कभी समर्थन नहीं किया। उनके विचार से ऐसे साधन नैतिक दृष्टि से तो अनुचित थे ही, तत्कालीन परिस्थितियों में ये राजनीतिक इष्टसिद्धि की दृष्टि से भी अनुपयुक्त थे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति की योजना बनाई हो ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता।







