मौर्य साम्राज्य का उदय एवं पतन

मौर्य वंश से पहले मगध पर नंद वंश के शासक घनानंद का शासन था। जो एक शक्तिशाली राज्य के रूप में दिखाई देता है। लेकिन वही दूसरी तरफ 325 ईसा पूर्व में  पश्चिमोत्तर भारत का सम्पूर्ण क्षेत्र सिकंदर के अधीन था। जब सिकंदर तक्षशिला पर चढ़ाई कर रहा था। तब एक ब्राह्मण, मगध के शासक घनानंद के पास साम्राज्य विस्तार को लेकर प्रोत्साहित करने आया, यह ब्राह्मण कोई और नहीं बल्कि कूटनीति के ज्ञाता “चाणक्य”थे। जिन्हें कौटिल्य के नाम से जाना जाता है। वस्तुतः इनके बचपन का नाम  “विष्णुगुप्त” था। राजा घनानंद ने चाणक्य को एक तुच्छ ब्राह्मण समझकर उन्हें अपने राज दरबार में अपमानित किया। इस अपमान का चाणक्य के हृदय पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप उसी राज दरबार में चाणक्य ने प्रतिज्ञा ली, कि वह घनानंद को सबक सिखा कर रहेंगे। लेकिन इस कार्य के लिए उन्हें एक सच्चे, साहसी और निडर योद्धा की तलाश थी। चाणक्य को ये सभी गुण “चंद्रगुप्त मौर्य” में दिखाई दिए। इसलिए चाणक्य नेे गुरु-शिष्य के अनुरूप चंद्रगुप्त मौर्य को वेदों का ज्ञान एवं युद्ध विद्या की शिक्षा देकर एक सर्वश्रेष्ठ योद्धा बनाया, और घनानंद को पराजित कर मौर्य साम्राज्य की नींव डाली।

चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रारंभिक जीवन के बारे में जानकारी हमें जैन और बौद्ध ग्रंथों से प्राप्त होती है। विशाखदत्त के नाटक ‘मुद्राराक्षस’ में चन्द्रगुप्त को नंदपुत्र न कहकर मौर्यपुत्र कहा गया है। यह भी कहा जाता है कि चन्द्रगुप्त “मुरा” नाम की भील महिला के पुत्र थे। यह महिला घनानंद के राज्य में नर्तकी थी। जिसे राजा की आज्ञा के अनुरूप राज्य छोड़कर जाने का आदेश दिया गया था, और वह महिला जंगल में रहकर जैसे-तैसे अपने दिन गुजार रही थी।

चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ईसा पूर्व में मौरिय अथवा मौर्य वंश के कुल में हुआ था। जबकि अन्य इतिहासकारों का मानना हैं, कि वह मयूर टोमेर्स के “मोरिया जनजाति” के थे। कहते हैं कि वे जन्म से ही गरीब थे, उनके पिता नन्दों की सेना में एक अधिकारी थे, जो किसी कारणवंश नन्दों द्वारा मार दिए गए थे। उनके पिता की मौत चन्द्रगुप्त के जन्म से पहले ही हो गई थी। जब चन्द्रगुप्त 10 वर्ष के थे तो उनकी मां “मुरा” का भी देहांत हो गया था, और तब से उनकी परवरिश आचार्य चाणक्य ने की थी। आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य को सभी प्रकार की युद्ध विद्या में पारंगत करते हुए एक शक्तिशाली योद्धा और श्रेष्ठ राजा के रूप में मगध की गद्दी पर बिठाया।राजत्व के कार्यभार से सुसज्जित चंद्रगुप्त मौर्य ने एक सबल और सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र की नींव डाली और साथ ही अपनी प्रजा का विश्वास भी जीता।

चाणक्य ने अपनी बुद्धिमता से पूरे राज्य में गुप्तचरों का जाल बिछाया। और इन्ही गुप्तचरों के माध्यम से राज्य में चल रहे  हालातों के बारे में सभी प्रकार की जानकारियों को बड़ी ही आसानी से एकत्रित किया। जिसके आलोक में यूनानी आक्रमणकारियों को मार भगाया जाय और मौर्य साम्राज्य के विस्तार को हिंदुकुश तक पहुंचाया जाए।

मगध पर आक्रमण करने से पूर्व, चाणक्य ने मगध में कई गृह युद्धों को उकसाया।और अपने गुप्तचरों के माध्यम से  घनानंद के अधिकारियों को रिश्वत देकर उन्हें अपनी ओर कर लिया। तत्पश्चात चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य और पोरस की सहायता से घनानन्द को पराजित कर पद से हटा दिया। वस्तुतः घनानंद को निर्वासित जीवन जीना पड़ा। इसके अतिरिक्त घनानंद के बारे में और कोई जानकारी प्राप्त नही होती है।

मौर्य साम्राज्य प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली साम्राज्य था। जिसने 322 ईसा पूर्व से लेकर 185 ईसा पूर्व तक अर्थात लगभग 137 वर्षों तक भारत पर राज किया। मौर्यकाल के दौरान भारत एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ था। यह साम्राज्य पूर्व में मगध राज्य में गंगा नदी के मैदान से शुरू हुआ था। जहां आज के बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्र स्थित है, मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी। जिसके अंतर्गत वर्तमान अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बलूचिस्तान और नेपाल  इत्यादि  क्षेत्र शामिल थे।

मगध पर नियंत्रण के बाद चंद्रगुप्त ने पश्चिमी तथा दक्षिणी भारत पर विजय अभियान आरंभ किया। सम्राज्यवादी नीति का पालन करते हुए चन्द्रगुप्त मौर्य ने तेजी से पश्चिम की ओर कूच किया,और छोटे-छोटे क्षेत्रीय राज्यों की आपसी मतभेदों का फायदा उठा कर लगभग 316 ईसा पूर्व तक समूचे पश्चिमोत्तर भारत पर अपना अधिकार जमा लिया। उत्तर पश्चमी भारत को यूनानी शासन से मुक्ति दिलाने के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य का ध्यान दक्षिण की तरफ गया। चंद्रगुप्त ने सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस को 305 ईसा पूर्व में हराया था। कहा जाता है कि इस युद्ध में सेल्यूकस की हार के बाद चंद्रगुप्त और सेल्यूकस के बीच एक संधि हुई ,और इस संधि के तहत कांधार, काबुल, हेरात और मकरान केे क्षेत्र चंद्रगुप्त मौर्य को सौंप दिए गए। और साथ ही सेल्युकस की बेटी कर्नालिया अर्थात हेलना से वैवाहिक संबंध भी बनाने पड़े।

इस विवाह के फलस्वरूप चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्युकस को 500 हाथी उपहार के रूप में भेंट किया। इसके साथ ही सेल्यूकस ने मेगास्थनीज को चंद्रगुप्त के दरबार में राजदूत के रूप में भेजा।जिसने इण्डिका नामक पुस्तक की रचना की। जिसमे वर्णित है कि, चंद्रगुप्त मौर्य ने अपनी 6 लाख सैनिकों की विशाल सेना से संपूर्ण भारत को रौंद दिया और छोटे-छोटे राज्यों को अपने साम्राज्य के अधीन कर लिया।

इतिहासकारों के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य ने लगभग 32 वर्षों तक मौर्य साम्राज्य का शासन संभाला इसके प्रश्चात चंद्रगुप्त मौर्य ने अपना राज सिंहासन त्याग कर जैन धर्म अपना लिया।

ऐसा कहा जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य अपने गुरु जैन मुनि “भद्रबाहु” के साथ कर्नाटक के “श्रवणबेलगोला” में सन्यासी के रूप में रहने लगे थे, इसके बाद के शिलालेखों में भी ऐसा ही माना जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य ने एक सच्चे निष्ठावान जैन की तरह आमरण उपवास करके संलेखना विधि से अपने प्राण त्याग दिए।

चंद्रगुप्त मौर्य के बाद उसके पुत्र बिंदुसार ने सत्ता पर अपना अधिकार किया परंतु उसके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं है। वस्तुतः दक्षिण की ओर मौर्य साम्राज्य के विस्तार का श्रेय बिंदुसार को ही दिया जाता है। हालांकि इतिहास में उसके विजय अभियान का कोई भी साक्ष्य स्प्ष्ट रूप से प्राप्त नहीं है, जैन परंपरा के अनुसार बिंदुसार की माता का नाम “दुर्धरा” था और पुराणों में वर्णित है कि बिंदुसार ने 25 वर्षों तक मगध पर शासन किया। बिंदुसार को अमित्रघात यानी दुश्मनों का संघार करने वाला भी कहा जाता है जिसे यूनानी ग्रंथों में “अमित्रओकस” नाम दिया गया है। सम्भवतः यह आजीवक धर्म का अनुयायी था।

बिंदुसार के बाद सम्राट अशोक मौर्य वंश का शासक बना सम्राट अशोक भारत के ही नहीं बल्कि विश्व के इतिहास के सबसे महान शासकों में से एक थे। चक्रवर्ती सम्राट अशोक के शासनकाल में ही मौर्य साम्राज्य का वृहद स्तर पर विस्तार हुआ।

साम्राज्य के विस्तार के अतिरिक्त प्रशासन तथा धार्मिक सहिष्णुता के क्षेत्र में उनका नाम सभी राजाओं में सबसे ऊपर है कलिंग का युद्ध उनके जीवन का अंतिम युद्ध था इस युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने जीवन भर कभी ना युद्ध करने की प्रतिज्ञा ली।

कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया। जिसकी दीक्षा उन्होंने बुद्ध मुनि “उपगुप्त” से ली।

बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद अशोक ने शिकार करना और पशुओं की हत्या करना बंद कर दिया। उसने पशुओं तथा जानवरों के लिए चिकित्सालयों की स्थापना करवाई सम्राट अशोक ने आरामगृह, धर्मशाला औऱ कुएं का भी निर्माण करवाया। जिसके प्रमाण “रुद्रदामन” के जूनागढ़ शिलालेख से प्राप्त होता है, जिसमे उल्लेखित है कि सिंचाई के लिए सुदर्शन झील पर एक बांध पुष्यगुप्त द्वारा बनाया गया था। जो उस समय अशोक का प्रांतीय राज्यपाल था।

सम्राट अशोक को “देवानांप्रिय” और “प्रियदर्शी” जैसी उपाधि दी गई है सम्राट अशोक के शिलालेख और शिलाओ पर उत्तीर्ण उपदेश भारतीय उपमहाद्वीप में जगह -जगह पाए गए हैं।

सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए विदेशों में भी अपने प्रचारक भेजें। उन्होंने बुद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को जल मार्ग द्वारा अपनी राजधानी से श्रीलंका भेजा। पटना या पाटलिपुत्र के ऐतिहासिक महेंद्र घाट का नाम अशोक के पुत्र महेंद्र के नाम पर ही रखा गया है। युद्ध से मन उब जाने के बाद भी सम्राट अशोक ने एक बड़ी सेना को बनाए रखा था ताकि अपने साम्राज्य को विदेशी आक्रमणकारियों से बचाया जा सके।

सम्राट अशोक के बाद उनके पुत्र “कुणाल” ने मौर्य साम्राज्य की गद्दी संभाली। “कुणाल” सम्राट अशोक की रानी पद्मावती के पुत्र थे। और ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण अशोक “कुणाल” को राजगद्दी पर बैठाना चाहते थे लेकिन उनकी सौतेली माता को यह मंजूर  नहीं था। अतः ईर्ष्या के कारण उनकी सौतेली मॉं ने “कुणाल” को अंधा कर दिया। लेकिन फिर भी कुणाल ने लगभग 8 वर्षों तक मौर्य साम्राज्य का शासन संभाला।

दशरथ मौर्य साम्राज्य के पांचवे शासक  और अशोक महान के पोते थे। इन्होंने 232 ईसा पूर्व से 224 ईसा पूर्व तक मौर्य साम्राज्य पर शासन किया। ये सम्राट अशोक की धार्मिक व सामाजिक नीतियों का पालन करते थे।

दशरथ मौर्य के बाद उनके चचेरे भाई संप्रति ने मौर्य साम्राज्य की राजगद्दी संभाली। संप्रति मौर्य वंश का छठा शासक व कुणाल के पुत्र थे। इन्होंने 224 ईसा पूर्व से 215 ईसा पूर्व तक यानी करीब 9 वर्षो तक मौर्य साम्राज्य पर शासन किया।

संप्रति के बाद शालिशुक को मौर्य साम्राज्य का सातवां शासक माना जाता है, इन्होंने 215 ईसा पूर्व से 202 ईसा पूर्व तक यानी लगभग 13 वर्षों तक मौर्य साम्राज्य पर शासन किया। वस्तुतः गार्गी संहिता के युग पुराण खंड में शालिशुक का उल्लेख मौर्य साम्राज्य के अधर्मी शासक के रूप में किया गया है।

शालिशुक के बाद उनके पुत्र देववर्मन ने मौर्य साम्राज्य की राजगद्दी संभाली। इन्होंने 202 ईसा पूर्व से 195 ईसा पूर्व  तक मौर्य साम्राज्य पर शासन किया ।

“देववर्मन” के बाद उनके उत्तराधिकारी “शतधन्नवा” ने मौर्य साम्राज्य की राजगद्दी संभाली। इन्होंने लगभग आठ वर्षों तक अर्थात 195 ईसा पूर्व से 187 ईसा पूर्व  तक शासन किया । इन्होंने अपने कुछ प्रदेशों को युद्ध के दौरान खो दिया था । 

वृहद्रथ को मौर्य वंश का अंतिम शासक माना जाता है। इन्होंने 187 ईसा पूर्व से 185 ईसा पूर्व तक मौर्य साम्राज्य पर शासन किया । वृहद्रथ की हत्या उन्ही के सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी और मौर्य साम्राज्य के स्थान पर शुंग साम्राज्य की स्थापना की।

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