अयोध्या धाम

हिन्दुओ की आन है,हिन्दुओ की शान है।

सबसे बड़े हनुमंत आराध्य है।।

कहे अयोध्या धाम,की रामही सबसे बड़ा है नाम, की रामही सबसे बड़ा है नाम….

आन,बान,शान सब तुझपे लुटाए थे।

मिला था मौका खून भी बहाए थे।।

बन जाए निज राम का धाम,कि रामहि सबसे बड़ा है नाम,कि रामहि सबसे बड़ा है नाम………

तेईस में भव्य राम मंदिर बनेगा।

सोई हुई आत्मा फिर से जागेगा।।

गूँजेगा बस एकहि नाम,कि दुनिया बोलेगी रामहि राम,कि दुनिया बोलेगी रामहि राम……..

प्रभु श्री राम की अयोध्‍या नगरी आज  केवल भारतवर्ष में ही नही, अप‍ितु पूरे व‍िश्‍व में चर्चा का केन्द्र बिंदु बना हुआ है।प्राचीनता की गर्भ को खंगालने से प्राप्त होता है कि अयोध्या नगर को महाराज “मनु” ने बसाया था। जिनके सबसे बड़े पुत्र इक्ष्वाकु वंश से सम्बंधित थे।और इसी वंश में भगवान श्रीराम ने अवतार लेकर इस पावन धरा को धन्य किया था। प्रभु श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप नए भारत के निर्माण के साथ एक नए युग का आरम्भ होने जा रहा है। जिसकी पटकथा नवनिर्माण, नवोन्मेष और नए भारत के कीर्तिमान के साथ जुड़ा होगा।

धार्मिक आस्था के प्रतिमान भगवान पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्मस्थली पर भव्य और दिव्य मंदिर की सुंदर काया लिए मनमोहक प्रतिबिम्ब भक्तगणो के सामने आने वाली है। यही वजह है कि हर तरफ श्रीराम की जय-जयकार और अयोध्‍या की चर्चा हो रही है।

अयोध्‍या के इतिहास पर नजर डालेंने पर पता चलता है कि यह देवभूमि मात्र एक नगर नहीं ,अपितु भूत, वर्तमान एवं भविष्य यानी कि सभी कालो में इस धरा पर धर्म का केंद्र रही है। इसीलिए हिन्दू समुदाय के लिए अयोध्या जीवन है, मरण है, सभ्यता है,और संस्कृति है।

वर्तमान समय की बात करे तो इस नगर की स्थापना अवध के पहले नबाव सआदत अली खान ने की थी। लेकिन अंग्रेजो की  हड़प नीति के तहत अवध को लार्ड डलहौजी के नेतृत्व में 1856 ईसवी में ब्रिटिश भारत में मिला लिया गया। लेकिन समय के साथ अयोध्या को फैज़ाबाद जिले के अंतर्गत समाहित करते हुए 5 नवंबर 2018 तक यथास्थिति को बनाए रखा गया।और फिर 6 नवंबर 2018 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने इस जिले का नाम बदल कर अयोध्या किए जाने की घोषणा कर दी थी।

भारत की प्राचीन नगरियों में से एक अयोध्या को हिन्दू पौराणिक इतिहास में पवित्र सप्त-पुरियों में मथुरा, माया अर्थात  हरिद्वार, काशी, कांची, अवंतिका अर्थात उज्जैन और द्वारका में शामिल किया गया है। तो वही दूसरी ओर अयोध्या को अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है।

अयोध्या में कई महान योद्धा, ऋषि-मुनि और अवतारी पुरुष हो चुके हैं। जैन परंपरा के अनुसार 24 तीर्थंकरों में से 22 इक्ष्वाकु वंश के थे। जिनमें सर्वप्रथम तीर्थंकर आदिनाथ यानी कि ऋषभदेव जी और इनके साथ चार अन्य तीर्थंकरों का जन्मस्थान भी अयोध्या ही है। बौद्ध मान्यताओं के अनुसार बुद्ध देव ने अयोध्या अर्थात साकेत में 16 वर्षों तक निवास किया था।

पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्मा से जब मनु ने अपने लिए एक नगर के निर्माण की बात कही, तो वे उन्हें विष्णुजी के पास ले गए। विष्णुजी ने उन्हें साकेतधाम में एक उपयुक्त स्थान बताया। विष्णुजी ने इस नगरी को बसाने के लिए ब्रह्मा और मनु के साथ देवशिल्‍पी विश्‍वकर्मा जी को भेज दिया। इसके अलावा अपने रामावतार के लिए उपयुक्‍त स्‍थान ढूंढने के लिए महर्षि वशिष्‍ठ को भी उनके साथ भेजा। मान्‍यता है कि वशिष्‍ठ द्वारा सरयू नदी के तट पर लीलाभूमि का चयन किया गया, जहां विश्‍वकर्मा ने नगर का निर्माण किया। स्‍कंदपुराण के अनुसार अयोध्‍या भगवान विष्‍णु के चक्र पर विराजमान है।

भगवान श्रीराम के बाद राजकुमार लव ने श्रावस्ती बसाई। जिसका स्वतंत्र उल्लेख अगले 800 वर्षों तक मिलता है। कहते हैं कि भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने एक बार पुन: राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया था। इसके बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इसका अस्तित्व बरकरार रहा। रामचंद्र से लेकर द्वापरकालीन महाभारत और उसके बहुत बाद तक हमें अयोध्या के सूर्यवंशी इक्ष्वाकुओं के उल्लेख मिलते हैं। इस वंश से सम्बंधित बृहद्रथ,  ‘महाभारत’ के युद्ध में अभिमन्यु के हांथों मारा गया था। जिसके बाद अयोध्या उजड़-सी गई। लेकिन उस दौर में भी श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व सुरक्षित था जो लगभग 14वीं सदी तक बरकरार रहा।

बेंटली एवं पार्जिटर जैसे विद्वानों ने ‘ग्रह मंजरी’ इत्यादि प्राचीन भारतीय ग्रंथों के आधार पर इनकी स्थापना का काल ईसा पूर्व 2200 के आसपास माना है। इस वंश में राजा रामचंद्रजी के पिता दशरथ 63वें शासक हैं।…जबकि शोधानुसार पता चलता है कि भगवान राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व हुआ था। जिसके उपलक्ष्य में चैत्र मास की नवमी को रामनवमी का आयोजन बड़े ही धूम-धाम से किया जाता है।

महाभारत काल के बाद अयोध्या नगर मगध राज्य के मौर्यों से लेकर गुप्तों और कन्नौज के शासकों के अधीन रहा। अंत में यहां महमूद गजनी के भांजे “सैय्यद सालार” ने तुर्क शासन की स्थापना की। जिसकी मृत्यु 1033 ईसवी में उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में हुई थी। कालांतर में जब जौनपुर में शकों का राज्य स्थापित हुआ, तो अयोध्या शर्कियों के अधीन हो गया।

लेकिन जब 1526 ईसवी में पानीपत की लड़ाई में “बाबर” ने “इब्राहिम लोदी” को हराकर मुगल वंश की स्थापना की,तो उसके सेनापति “मीरबकी” ने 1528 ईसवी में अयोध्या पर चढ़ायी करके रामजन्म भूमि परिसर में मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया। जो 1992 में मंदिर-मस्जिद विवाद के चलते रामजन्मभूमि आन्दोलन के दौरान ढहा दी गई।

अयोध्या रघुवंशी राजाओं की बहुत पुरानी राजधानी थी। पहले यह कौशल जनपद की राजधानी थी। प्राचीन उल्लेखों के अनुसार तब इसका क्षेत्रफल 96 वर्ग मील था। वाल्‍मीकि रामायण के 5वें सर्ग में अयोध्‍यापुरी का वर्णन विस्‍तार से किया गया है।

वाल्मीकि कृत रामायण के बालकाण्ड में उल्लेख मिलता है कि अयोध्या 12 योजन-लम्बी और 3 योजन चौड़ी थी। सातवीं सदी के चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इसे ‘पिकोसिया’ शब्द से संबोधित किया है। जिसके अनुसार इसकी परिधि 16ली, जंहा एक चीनी ‘ली’ 1 मील के 6ठे हिस्से के बराबर थी। तो वही आईन-ए-अकबरी के अनुसार इस नगर की लंबाई 148 कोस और चौड़ाई 32 कोस मानी गई है।

वाल्‍मीकि जी अयोध्या की सड़कों की सफाई और सुंदरता के बारे में लिखते हैं, कि अयोध्यापुरी चारों ओर फैली हुई बड़ी-बड़ी सड़कों से सुशोभित थी। सड़कों पर नित्‍य जल छिड़का जाता था और फूल बिछाए जाते थे। इन्द्र की अमरावती की तरह महाराज दशरथ ने उस पुरी को सजाया था। इस पुरी में राज्‍य को खूब बढ़ाने वाले महाराज दशरथ उसी प्रकार रहते थे जिस प्रकार स्‍वर्ग में इन्‍द्र वास करते हैं।

महर्षि आगे लिखते हैं, इस पुरी में बड़े-बड़े तोरण द्वार, सुंदर बाजार और नगर की रक्षा के लिए चतुर शिल्‍पियों द्वारा बनाए गए सभी प्रकार के यंत्र और शस्‍त्र रखे हुए थे।   यंहा के निवासी धन-धान्य से सम्पन्न रहते थे,और बड़ी-बड़ी ऊंची अटारियों वाले मकान जो ध्‍वजा-पताकाओं से शोभित थे।अयोध्या की सुन्दरता में चार-चाँद लगाते थे।

आगे लिखते हुए महर्षि वाल्‍मीक कहते है, कि ‘स्‍त्रियों की नाट्य समितियों की भी यहां कमी नहीं है, और सर्वत्र जगह-जगह उद्यान निर्मित थे। आम के बाग नगर की शोभा बढ़ाते थे। नगर के चारों ओर सखुओं के लंबे-लंबे वृक्ष लगे हुए ऐसे जान पड़ते थे, मानो अयोध्‍या रूपिणी स्‍त्री करधनी पहने हो। यह नगर दुर्गम किले और खाई से युक्‍त थी। हाथी, घोड़े, बैल, ऊंट, खच्‍चर  जगह-जगह दिखाई पड़ते थे। कुओं में गन्‍ने के रस जैसा मीठा जल भरा हुआ था। नगाड़े, मृदंग, वीणा, पनस आदि बाजों की ध्‍वनि से नगर सदा प्रतिध्‍वनित हुआ करती थी। पृथ्‍वी तल पर तो इसकी टक्‍कर की दूसरी नगरी थी ही नहीं।इस उत्‍तम पुरी में गरीब यानी धनहीन तो कोई था ही नहीं,  यहां जितने कुटुम्‍ब बसते थे, उन सबके पास धन-धान्‍य, गाय, बैल और घोड़े थे।’

काशी की तरह अयोध्या घाटों और मंदिरों से सुशोभित है। जंहा से सरयू नदी होकर बहती है। सरयू नदी के किनारे 14 प्रमुख घाट हैं। इनमें गुप्त द्वार घाट, कैकेयी घाट, कौशल्या घाट, पापमोचन घाट, लक्ष्मण घाट आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

                  जय श्री राम

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