लखन पुत्र आनंद ने बसाया।
गुरु गोरखनाथ से- है नाम जो पाया।।
कबीरा और बुद्ध का रुप है तू।
सूर्यवंश का स्वरूप है तू।।
अमन चैन के आदि है हम।
गोरखपुर के साथी है हम।।
हर कोई वंदन करता है आज।
योग कला के बहुत छिपे है राज।।
है विश्व-प्रसिद्ध गीता-प्रेस यहाँ पर।
इतिहास में दर्ज चौरी-चौरा की घटना भी इसी धरा पर।।
इसीलिए गोरखपुर है सबसे खास, सबसे खास…….
बौद्ध परिपथ के हृदय स्थल पर मौजूद गुरु गोरक्षनाथ की तपोस्थली गोरखपुर, बहुत सी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक खूबियों को खुद में समेटे हुए है। गीता प्रेस और गीता वाटिका की विश्वस्तरीय पहचान से तो हर कोई वाकिफ है, गोरखनाथ मंदिर जैसी नाथ पंथ की आध्यात्मिक पीठ भी गोरखपुर को राष्ट्रीय फलक पर स्थापित करती है। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और बंधु सिंह का बलिदान और संत कबीर के देहत्याग की गवाह यह धरती अपने आप में स्मरणीय है।
सात वर्ग किलोमीटर में फैले भव्य रामगढ़ ताल की बात तो गोरखपुर के प्राकृतिक धरोहरों में होती ही है। इसके बावजूद गोरखपुर, मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी और कथाकार प्रेमचंद के नाम से साहित्य के राष्ट्रीय फलक पर अपनी ख्याति को बनाए हुए है, जबकि स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण असहयोग आंदोलन के स्थगित होने की वजह बने चौरीचौरा कांड का चौरीचौरा भी गोरखपुर में आजादी की लड़ाई में शहीद हुए सपूतों की कशीदे गढ़ने में पीछे नहीं है। तो 100 किलोमीटर के दायरे में मौजूद भगवान बुद्ध से जुड़े कपिलवस्तु और कुशीनगर गोरखपुर को अंतरराष्ट्रीय नक्शे पर स्थापित करते हैं। वर्तमान समय में गोरखपुर उर्वरक कारखाना और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान अर्थात् एम्स भी अब गोरखपुर की पहचान को एक नए कीर्तिमान पर स्थापित करने के लिए दिन दूनी रात चौगनी तन्मयता के साथ कार्यरत है।
नमस्कार आप देख रहे जायसवाल मीडिया के प्रेजेंटेशन में “जिलावार”, तो आइए हम आप को ले चलते है, अपने नेक्स्ट एपीसोड में गोरखपुर जिले की ओर, जहां हम जिले के इतिहास के साथ इसकी समाजिक, सांस्कृतिक, प्रशासनिक और आर्थिक भव्यता से जुड़े कशीदो को जानने और पर्यटकों को अपनी धार्मिक, सांस्कृतिक धरोहरों से आकर्षित करते स्थलों का दीदार करेंगे।
बीते 2600 वर्षो में गोरखपुर आठ नामों की पहचान का सफर तय कर चुका है। जिसके नाम है क्रमशः रामग्राम, पिप्पलीवन, गोरक्षपुर, सूबा-ए-सरकिया, अख्तरनगर, गोरखपुर सरकार, मोअज्जमाबाद और अब गोरखपुर।
इसकी प्राचीनता के संबंध में प्राप्त प्रामाणिक अभिलेखों के अभाव में संदिग्ध रूप से सीधे तौर कुछ कहना संभव नहीं है। हां, पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर इसे 26 सौ वर्ष पुराना कहा जा सकता है। इन्हीं प्रमाणों के आधार पर यह कहा जाता है कि आज का गोरखपुर ही तब का रामग्राम था, जो छठी शताब्दी ईसा पूर्व पांच गणराज्यों में से एक था। जहां महात्मा बुद्ध ने एक बार ठहर कर कोलियों और शाक्यों के बीच का नदी जल विवाद सुलझाया था। तथापि जनश्रुति यह भी है कि महाभारत काल में युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ का निमन्त्रण देने उनके छोटे भाई भीम स्वयं यहाँ आये थे। चूँकि गोरक्षनाथ जी उस समय समाधिस्थ थे। अत: भीम ने यहाँ कई दिनों तक विश्राम किया। उनकी विशालकाय लेटी हुई प्रतिमा आज भी हर साल तीर्थयात्रियों की एक बड़ी संख्या को अपनी ओर आकर्षित करती है।
इसी लोक विख्यात तथ्य के आधार पर हम गोरखपुर को 500 ईसा पूर्व का नगर कह सकते हैं। सांस्कृतिक दृष्टि से इसकी महत्ता योगमूलक है। इसके सूत्र हमें सातवीं- आठवीं शताब्दी में महायोगी गुरु गोरक्षनाथ की योग-सभ्यता, उनके तत्व ज्ञान और विपुल साहित्य में मिलते हैं। गोरखपुर की एक बड़ी खासियत यहां की समावेशी संस्कृति भी है। सांप्रदायिक सद्भाव को लेकर यह शहर देश भर के लिए मिसाल है। साहित्यिक उपलब्धियों के नजरिये से भी गोरखपुर देश में चमकता हुआ सितारा है। हिंदी, संस्कृत, फारसी, उर्दू, भोजपुरी आदि भाषाओं में साहित्य की यहां समृद्ध परंपरा रही है। अदब की दुनिया के सशक्त हस्ताक्षर फिराक गोरखपुरी का नाम तो देश के साहित्यिक क्षितिज पर चमकता ही है।
प्राचीन समय में गोरखपुर के भौगोलिक क्षेत्र में बस्ती, देवरिया, कुशीनगर, आजमगढ़, मऊ इत्यादि आधुनिक जिले शामिल थे। वैदिक लेखन के मुताबिक, अयोध्या के सत्तारूढ़ ज्ञात सम्राट इक्ष्वाकु, जो सूर्यवंश के संस्थापक थे। जिनके वंश में उत्पन्न सूर्यवंशी राजाओं में रामायण के राम का स्मरण उल्लेखनीय है, पूरे क्षेत्र में अति प्राचीन आर्य संस्कृति और सभ्यता के प्रमुख केन्द्र कोशल और मल्ल, जो सोलह महाजनपदों में दो प्रसिद्ध राज्य ईसा पूर्व छ्ठी शताब्दी में विद्यमान थे, यह उन्ही राज्यों का एक महत्वपूर्ण केन्द्र हुआ करता था।
गोरखपुर में राप्ती और रोहिणी नदियों का संगम होता है। ईसा पूर्व छठी शताब्दी में गौतम बुद्ध ने सत्य की खोज पर जाने से पहले अपने राजसी वस्त्र त्याग दिये थे। बाद में उन्होने मल्ल राज्य की राजधानी कुशीनारा, जो अब कुशीनगर के रूप में जाना जाता है, पर मल्ल राजा हस्तिपाल मल्ल के आँगन में अपना शरीर त्याग दिया था। कुशीनगर में आज भी इस आशय का एक स्मारक है। यह शहर भगवान बुद्ध के समकालीन 24वें जैन तीर्थंकर भगवान महावीर की यात्रा के साथ भी जुड़ा हुआ है।
इक्ष्वाकु राजवंश के बाद चौथी सदी में मगध पर जब नंद राजवंश का विजय पताका लहराया , तो उसके बाद गोरखपुर मौर्य, शुंग, कुषाण, गुप्त और हर्ष साम्राज्यों का हिस्सा बन गया। भारत का महान सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य जो मौर्य वंश का संस्थापक था, उसका सम्बन्ध पिप्पलीवन के एक छोटे से प्राचीन गणराज्य से था। यह गणराज्य भी नेपाल की तराई और कसिया में रुम्मनदेई के बीच उत्तर प्रदेश के इसी गोरखपुर जिले में स्थित था। 10 वीं सदी में थारू जाति के राजा मदन सिंह ने गोरखपुर शहर और आसपास के क्षेत्र पर शासन किया।
मध्यकालीन समय में, इस शहर को मध्यकालीन हिन्दू सन्त गोरक्षनाथ के नाम पर गोरखपुर नाम दिया गया था। हालांकि गोरक्षनाथ की जन्म तिथि अभी तक स्पष्ट नहीं है। 12वीं सदी में, गोरखपुर क्षेत्र पर उत्तरी भारत के मुस्लिम शासक मुहम्मद गौरी ने विजय प्राप्त की थी बाद में यह क्षेत्र कुतुबुद्दीन ऐबक और बहादुरशाह, जैसे मुस्लिम शासकों के प्रभाव में कुछ शताब्दियों के लिए बना रहा।
16वीं शताब्दी में मुगल बादशाह अकबर ने साम्राज्य के पुनर्गठन पर, जो पाँच सरकार स्थापित की थीं।”सरकार” नाम की उन प्रशासनिक इकाइयों में अवध प्रान्त के अन्तर्गत गोरखपुर का नाम मिलता है।
परंतु आधुनिक भारत के इतिहास में गोरखपुर 1803 ईसवी में प्रत्यक्ष रुप से ब्रिटिश नियन्त्रण में आया।और 1857 के विद्रोह के प्रमुख केंद्रों में रहा और साथ ही चौरीचौरा की 4 फ़रवरी 1922 की घटना जो भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुई, जब पुलिस अत्याचार से गुस्साए 2000 लोगों की एक भीड़ ने चौरीचौरा का थाना ही फूँक दिया। जिसमें उन्नीस पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गयी। आम जनता की इस हिंसा से घबराकर महात्मा गांधी ने अपना असहयोग आंदोलन यकायक स्थगित कर दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि उत्तर प्रदेश में ही हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नाम का एक देशव्यापी प्रमुख क्रान्तिकारी दल गठित हुआ। जिसने 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड करके ब्रिटिश सरकार को खुली चुनौती दी, जिसके परिणामस्वरूप दल के प्रमुख क्रन्तिकारी नेता राम प्रसाद बिस्मिल’ को गोरखपुर जेल में ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई में सक्रिय भाग लेने के लिये फाँसी दे दी गयी।
अंततः भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में यह शहर एक प्रमुख भूमिका का निर्वहन किया।
भौगौलिक रुप से यह जिला 3483.8 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है जिसके उत्तर में महराजगंज जिला, दक्षिण में आजमगढ़ जिला, पूर्व में देवरिया जिला, पश्चिम में संत कबीर नगर जिला, उत्तर-पूर्व में कुशीनगर जिला, दक्षिण-पूर्व में मऊ जिला, दक्षिण-पश्चिम में सुल्तानपुर और उत्तर-पश्चिम में सिद्धार्थनगर जिला स्थित है।
जिले की कुल जनसंख्या 44,40,856 और जनसंख्या घनत्व 1,337 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। जबकि लिंगानुपात और साक्षरता दर के मामले में यह जिला क्रमशः 944 महिलाए प्रति 1000 पुरुष और 70.80 प्रतिशत पर समायोजित है।
प्रशासनिक रुप से इस जिले को 2 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के साथ 9 विधानसभा, 7 तहसील, 19 विकास खण्ड 1 नगर निगम,8 नगर पंचायत और 1294 ग्राम पंचायतों के क्रमबद्ध जाल में बांधा गया है। जिसके माध्यम से लोक कल्याण से जुड़े योजनाओं को लक्षित व्यक्ति तक पहुंचा कर “सबका साथ, सबका विकास” के उद्देश्य को चरित्रार्थ किया जा सके।
आर्थिक दृष्टिकोण से यह जिला मुख्यतः सेवा-उद्योग पर आधारित है। यहाँ का उत्पादन उद्योग पूर्वांचल के लोगों को बेहतर शिक्षा, चिकित्सा और अन्य सुविधाए मुहैय्या कराती है। शहर हाथ से बुने कपडों के लिये प्रसिद्ध है, यहाँ का टेराकोटा उद्योग अपने उत्पादों के लिए जाना जाता है। अधिक से अधिक व्यावसायिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए सभी राष्ट्रीयकृत बैंकों की शाखायें यही पर स्थित हैं।
गोरखपुर की भूमि अनेक ऐतिहासिक एवं मध्यकालीन धरोहरों, स्मारकों व मंदिरों के साथ संपन्न आज भी आकर्षण का केंद्र है।
गोरक्षनाथ मन्दिर
गोरखपुर रेलवे स्टेशन से 4 किलोमीटर पश्चिमोत्तर में स्थित नाथ सम्प्रदाय के संस्थापक सिद्ध पुरूष श्री मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य परम सिद्ध गुरु गोरक्षनाथ का अत्यन्त सुन्दर भव्य मन्दिर स्थित है। यहां प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर ‘खिचड़ी-मेला’ का आयोजन होता है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु व पर्यटक सम्मिलित होते हैं, जो एक माह तक चलता है।
विष्णु मन्दिर
यह मेडिकल कॉलेज मार्ग पर रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर की दूरी पर शाहपुर मोहल्ले में स्थित है। इस मन्दिर में 12वीं शताब्दी की पाल-कालीन काले कसौटी पत्थर से निर्मित भगवान विष्णु की विशाल प्रतिमा स्थापित है। यहां दशहरा के अवसर पर पारम्परिक रामलीला का आयोजन होता है।
गीताप्रेस
रेलवे स्टेशन से 4 किलोमीटर दूरी पर रेती चौक के पास स्थित गीताप्रेस में सफ़ेद संगमरमर की दीवारों पर श्रीमद्भगवदगीता के सम्पूर्ण 18 अध्याय के श्लोक उत्कीर्ण है। गीताप्रेस की दीवारों पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम एवं भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं की ‘चित्रकला’ प्रदर्शित हैं। यहां पर हिन्दू धर्म की दुर्लभ पुस्तकें, हैण्डलूम एवं टेक्सटाइल्स वस्त्र इत्यादि वस्तुए सरलता से प्राप्त हो जाते है। विश्व प्रसिद्ध पत्रिका कल्याण का प्रकाशन यहीं से किया जाता है।
विनोद वन
रेलवे स्टेशन से 9 किलोमीटर दूर गोरखपुर-कुशीनगर मार्ग पर अत्यन्त सुन्दर एवं मनोहारी छटा से परीपूर्ण मनोरंजन केन्द्र स्थित है जहाँ बारहसिंघे व अन्य हिरण, अजगर, खरगोश तथा अन्य वन्य पशु-पक्षी विचरण करते हैं। यहीं पर प्राचीन बुढ़िया माई का स्थान भी है, जो नववर्ष, नवरात्रि तथा अन्य अवसरों पर कई श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
गीतावाटिका
गोरखपुर-पिपराइच मार्ग पर रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर दूरी पर स्थित गीतावाटिका में राधा-कृष्ण का भव्य मनमोहक मन्दिर स्थित है। इसकी स्थापना प्रख्यात समाजसेवी हनुमान प्रसाद पोद्दार ने की थी।
रामगढ़ ताल
यह तालाब गोररखपुर शहर के अन्दर स्थित एक विशाल तालाब अर्थात् ताल है। यह रेलवे स्टेशन से 5 किलोमीटर दक्षिण में 1700 एकड़ के विस्तृत भू-भाग में स्थित है। यह पर्यटकों के लिए अत्यन्त आकर्षक केन्द्र है। यहां पर जल-क्रीड़ा केन्द्र, नौकाविहार, बौद्ध संग्रहालय, तारा मण्डल, चम्पादेवी पार्क एवं अम्बेडकर उद्यान आदि दर्शनीय स्थल हैं।
इमामबाड़ा
गोरखपुर नगर के मध्य में रेलवे स्टेशन से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस इमामबाड़ा का निर्माण हज़रत बाबा रोशन अलीशाह की अनुमति से सन् 1717 ई० में नवाब आसफुद्दौला ने करवाया था। उसी समय से यहां पर दो बहुमूल्य ताजियां, जिसमे एक स्वर्ण और दूसरा चांदी का शामिल है, रखा हुआ है। यहां से मुहर्रम का जुलूस निकलता है।
प्राचीन महादेव झारखंडी मन्दिर
गोरखपुर शहर से देवरिया मार्ग पर कूड़ाघाट बाज़ार के निकट शहर से 4 किलोमीटर पर यह प्राचीन शिव स्थल रामगढ़ ताल के पूर्वी भाग में स्थित है।
मुंशी प्रेमचन्द उद्यान
गोरखपुर नगर के मध्य में रेलवे स्टेशन से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मनोरम उद्यान प्रख्यात साहित्यकार मुंशी प्रेमचन्द के नाम पर बना है। इसमें प्रेमचन्द्र के साहित्य से सम्बन्धित एक विशाल पुस्तकालय निर्मित है। यह उन दिनों का द्योतक है जब मुंशी प्रेमचन्द गोरखपुर में एक शिक्षक थे।
सूर्यकुण्ड मन्दिर
गोरखपुर नगर के एक कोने में रेलवे स्टेशन से 4 किलोमीटर दूरी पर स्थित ताल के मध्य में स्थित इस स्थान के बारे में यह कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने यहाँ पर विश्राम किया था जो कि कालान्तर में भव्य सुर्यकुण्ड मन्दिर बना।
राजघाट
19 दिसम्बर 1927 को बिस्मिल की अन्त्येष्टि जहाँ पर की गयी वह राजघाट नाम का स्थान गोरखपुर में ही राप्ती नदी के तट पर स्थित है।







