मध्यकालीन भारत की शुरुआत

भारत के मध्यकालीन इतिहास का दौर 8 वीं सदी से लेकर 12 वीं सदी तक माना जाता है। इस काल में हम पाल, प्रतिहार और राष्ट्रकूट से लेकर शक्तिशाली दिल्ली सल्तनत और मुग़ल साम्राज्य के बारे में जानकारी को साझा करते हुए वर्तमान भारत के विकास में इसके महत्व और इस दौर में भवन निर्माण कला,चित्रकला, धर्म, भाषा व साहित्य के क्षेत्र में हुए विकास पर प्रकाश डालेंगे।

750-1000 ईस्वी के मध्य उत्तर भारत और डेक्कन में कई शक्तिशाली साम्राज्यों का उदय हुआ था। जिनमें पाल, प्रतिहार और राष्ट्रकूट सबसे महत्वपूर्ण थे। राष्ट्रकूट साम्राज्य सबसे लंबे समय तक चलने वाला साम्राज्य था जो अपने समय में सर्वाधिक शक्तिशाली भी था। पाल राजवंश की स्थापना 750 ईस्वी में गोपाल द्वारा की गयी थी जो पहले एक मुखिया था लेकिन बाद में बंगाल का राजा बन गया। वास्तव में वह बंगाल का पहला बौद्ध राजा था। गौ़ड राजवंश को उनके गढ़ कामरूप में शिकस्त देने के बाद उसने अपना प्रभुत्व स्थापित किया था।

750-1000 ईस्वी के मध्य उत्तर भारत और डेक्कन में कई शक्तिशाली साम्राज्य पैदा हुए। जिनमें पाल, प्रतिहार और राष्ट्रकूट सबसे महत्वपूर्ण थे।

पाल

पाल राजवंश की स्थापना 750 ईस्वी में गोपाल द्वारा की गयी थी जो पहले एक मुखिया था लेकिन बाद में बंगाल का राजा बन गया था। वास्तव में वह बंगाल का पहला बौद्ध राजा था। गौ़ड राजवंश को उनके गढ़ कामरूप में शिकस्त देने के बाद उसने अपना प्रभुत्व स्थापित किया था। जब उसकी मृत्यु हुयी थी तब बंगाल और बिहार के अधिकांश हिस्से उसके नियंत्रण में थे। बिहार के ओदंतपुरी में एक मठ के निर्माण का श्रेय गोपाल को जाता है।

गोपाल का उत्तराधिकारी धर्मपाल बना था। उसने 770-810 ईस्वी की अवधि के दौरान शासन किया था। उसके शासनकाल के दौरान पाल साम्राज्य उत्तर और पूर्वी भारत में सबसे शक्तिशाली साम्राज्य बन गया था।

उसने गुर्जर प्रतिहार और राष्ट्रकूटों के खिलाफ एक लंबे समय तक युद्ध लड़ा। गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट्ट द्वितीय के खिलाफ अपनी शर्मनाक हार के बावजूद वह पाल साम्राज्य की प्रतिष्ठा बचाने में कामयाब रहा और अपने साम्राज्य को पूरे बंगाल तथा बिहार तक विस्तारित किया।

एक प्रसिद्ध बौद्ध राजा धर्मपाल ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की जो भारत में बौद्ध धर्म के अध्ययन का एक प्रसिद्ध केंद्र था। यह विश्वविद्यालय बिहार में भागलपुर के कहलगांव में स्थित है।

धर्मपाल का उत्तराधिकारी देवपाल बना था। उसने अपने साम्राज्य को असम, ओडिशा और कामरूप तक विस्तारित किया। उसके शासनकाल के दौरान पाल सेनाओं ने एक बहुत ही सफल अभियान को अंजाम दिया था।

देवपाल के बाद ऐसे राजा सिंहासन पर विराजमान हुए जो बहुत ही कम जाने जाने थे। तत्पश्चात महिपाल पाल साम्राज्य का राजा बन गया था। उसने 995 ईसवी से 1043 ईसवी तक शासन किया था। उसे पाल राजवंश के दूसरे संस्थापक के रूप में जाना जाता है, उसने पाल साम्राज्य के सभी खोए हुए प्रदेशों को फिर से हासिल कर लिया था।

महिपाल के उत्तराधिकारी कमजोर थे और साम्राज्य पर अपनी पकड़ बरकरार नहीं रख सके थे।

प्रतिहार

गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना 6 वीं शताब्दी ईस्वी में हरीचंद्र द्वारा की गयी थी। वे 11 वीं सदी तक प्रभावशाली बने रहे थे। यह कहा जाता है कि उनका उदय उज्जैन या मंदसौर से हुआ था। नागभट्ट- प्रथम इस वंश का पहला महत्वपूर्ण शासक था। उसने 730 ईसवी से 756 ईसवी तक शासन किया था। उनके साम्राज्य में ग्वालियर,  भरूच और मालवा शामिल था। उसके साम्राज्य की राजधानी अवनि थी।

नागभट्ट प्रथम की उपलब्धि: उसने जुनैद, अरब कमांडर और उसके उत्तराधिकारी तमिन को राजस्थान के युद्ध में पराजित कर दिया था। इससे उसने सफलतापूर्वक अरब आक्रमण के खिलाफ पश्चिमी सीमाओं का बचाव किया था।

वत्सराज एक नये राजा के रूप में नागभट्ट प्रथम का उत्तराधिकारी बना और पाल राजा धर्मपाल को हराकर उसने कन्नौज पर अधिकार स्थापित कर लिया था।

नागभट्ट द्वितीय 805 ईस्वी के आसपास वत्सराज का उत्तराधिकारी बना था। वास्तव में, वह गुर्जर प्रतिहार राजवंश का सबसे प्रख्यात राजा था। उसे, विशेषकर 815 ईस्वी में सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए जाना जाता है। मंदिर को 725 ईस्वी में जूनायड की अरब सेनाओं ने नष्ट कर दिया गया था।

मिहिरभोज इस वंश का अन्य मुख्य राजा था। उसका शासनकाल 885 ईस्वी तक चला था। वह एक महान साम्राज्य निर्माता था। उसने युद्धों की एक श्रृखंलाओं में विजय प्राप्त करने के बाद गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान के प्रदेशों पर कब्जा कर लिया था। उसने अधिवर्हा का खिताब प्राप्त किया था और ग्वालियर में तेली मंदिर का निर्माण किया था।

हालांकि, 10 वीं सदी में गुर्जर प्रतिहारों की शक्ति में कमी आयी थी और उनके राजा भोज द्वितीय को पाल राजा महिपाल-प्रथम द्वारा शिकस्त का सामना करना पडा था। जल्द ही साम्राज्य विघटित हो गया और सामंतों ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया था।

राष्ट्रकूट

राष्ट्रकूट कन्नड़ मूल के थे और उनकी मातृभाषा कन्नड़ थी। राष्ट्रकूट वंश की स्थापना 8 वीं सदी में दन्तिदुर्ग द्वारा की गयी थी। उसने डेक्कन में राष्ट्रकूटों को एक सर्वोच्च शक्ति के रूप में स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उसने गुर्जरों को हराने के बाद मालवा पर आधिपत्य कर लिया था। उसने कीर्तिवर्मन द्वितीय को भी पराजित कर चालुक्य राज्य पर आधिपत्य स्थापित कर लिया था।

उसका उत्तराधिकारी कृष्ण प्रथम था जो एक महान साम्राज्य निर्माता था। कृष्ण प्रथम ने वेंगी के पूर्वी चालुक्यों और गंगों के खिलाफ विजय प्राप्त की थी। उसे एलोरा की चट्टानों को काटकर विशालकाय कैलाश मंदिर के निर्माण के लिए जाना जाता है। उसका उत्ताराधिकारी गोविंदा तृतीय रहा था।

हालांकि, 10 वीं सदी में गुर्जर प्रतिहारों की शक्ति में कमी आयी थी और उनके राजा भोज द्वितीय को पाल राजा महिपाल-प्रथम द्वारा शिकस्त का सामना करना पडा था। जल्द ही साम्राज्य विघटित हो गया और सामंतों ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया था।

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