लोदी वंश का इतिहास एवं महत्त्वपूर्ण घटनाएं

मध्यकालीन भारत के इतिहास पर अगर प्रकाश डाला जाए तो आप इस कालखंड को सियासी उठा-पटक के कालखंड के रूप में पाएंगे, इसी कालखंड में भारत पर कई विदेशी आक्रांताओं ने हमले करके यहाँ अपने वंश की स्थापना की। वस्तुतः मध्यकालीन भारत के इस कालखंड के दौरान भारत ने सत्ताओं के टकराव के बीच, मानवता और यहाँ की मूल सभ्यता के ऊपर आई अनेकों त्रासदियों को झेला है।

लोदी वंश के संस्थापक “बहलोल लोदी” का संबंध एक अफगानी कबीले से था, जो  दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन आलम के अधीन पंजाब के सरहिंद का गवर्नर था। सर्वप्रथम बहलोल लोदी ने सैय्यद वंश की कमजोर स्थिति का लाभ उठाकर पंजाब प्रांत पर कब्ज़ा कर लिया।  और बाद में सुल्तान अबुल मुजफ्फर बहलोल अल गाजी के शीर्षक के तहत वर्ष 1451 में दिल्ली पर उसका कब्जा हो गया। फलतः 15वी शताब्दी आते-आते अफगानियों ने अपना वर्चस्व बढ़ा लिया, जिसके परिणाम स्वरुप लोदी वंश के संस्थापक बहलोल लोदी ने सैय्यद वंश को समाप्त करके अपने वंश की स्थापना की, इस सत्ता के हस्तानांतरण में बहलोल लोदी का कोई विरोध भी नहीं हुआ।

लोदी वंश का उदय

लोदी वंश को अफगानों की “गिलजई” कबीले की शाखा “शाहूखेल कुटुंब” से संबंधित माना जाता है। अफगानों ने अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल से ही अपना वर्चस्व स्थापित करना शुरू कर दिया था, जिसका परिणाम यह रहा कि मोहम्मद तुगलक के काल में, अफगानों की शक्ति सामंतों के रूप में बढ़ी। और फिर फिरोज तुगलक के समय अफगानों की नियुक्ति गवर्नरों के रूप में की जाने लगी थी। इसके बाद देखा जा सकता है कि 15वीं शताब्दी आते-आते अफगान इतने शक्तिशाली हो गए कि सैय्यद वंश के शासनकाल में लगभग हर बड़े ओहदे पर इनका वर्चस्व स्थापित होने लगा। अफगानों की बढ़ती ताकत के कारण ही बहलोल लोदी के सत्ता पर काबिज़ होने पर उसका कोई विरोध नहीं हुआ और सैय्यद वंश के अंत के साथ लोदी वंश का उदय हुआ।

 

लोदी वंश के शासक

लोदी वंश का इतिहास इस वंश के मुख्य शासक को जाने बिना अधूरा है, तो आइए हम इस वंश के शासकों के बारे में एक एक करके अध्ययन करते है……..

 

बहलोल लोदी

लोदी वंश के संस्थापक बहलोल लोदी ने 1451 से 1489 ईस्वी तक शासन किया। अपनी राजनीतिक इच्छाशक्ति के चलते बहलोल लोदी ने अपनी सीमाओं का भी समय के साथ विस्तार किया। उसने अपने सरदारों को संतुष्ट करने के लिए अनेक उपाय किए। वह अपने सरदारों को “मकसद-ए-अली” कहकर पुकारता था। परिणामस्वरूप बहलोल लोदी ने ग्वालियर, समथल, सकीट, मेवात पर विजय प्राप्त की। लोदी वंश के संस्थापक की मृत्यु 1489 ईस्वी में हुई।

 

सिकंदर लोदी

सिकंदर शाही, बहलोल लोदी का पुत्र था, जिसने सिकंदर शाह की उपाधि लेकर अपनी सत्ता स्थापित की। सिकंदर लोदी ने 1489 से 1517 ईस्वी तक शासन किया। जिसमें उसने एक सुव्यवस्थित “जासूसी तंत्र” को भी स्थापित किया। इसके क्रूर शासनकाल में समानता न होने के कारण हिंदुओं पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए गए। और संभवतः दिल्ली सल्तनत के शासक के रूप में, सिकंदर लोदी ने अमीरों पर नियंत्रण रखा। दूसरी ओर, सिकंदर लोदी के शासनकाल के दौरान राज्यपालों के लिए आय का लेखा-जोखा प्रस्तुत करना अनिवार्य कर दिया गया था। साथ ही राज्यपालों को खर्च का हिसाब भी देने के लिए बाध्य किया जा रहा था। इसके अलावा, उनके फैसले में, अपराधियों को कड़ी सजा दी गई।

ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार सिकंदर लोदी को आगरा नामक ऐतिहासिक नगर की स्थापना करने वाला सम्राट माना गया है। इसके शासनकाल के दौरान, लोदी राजवंश का शासन पंजाब से लेकर बिहार तक भारत के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ था। इसलिए “सिकंदर लोदी” को ही लोदी वंश का प्रसिद्ध शासक भी माना जाता है।

इब्राहिम लोदी

सिकंदर लोदी के बाद सत्ता का उत्तराधिकारी “इब्राहीम लोदी” को बनाया गया, जिसने 1517 से 1526 ईस्वी तक शासन किया। इब्राहिम लोदी एक जिद्दी और असहिष्णु व्यक्ति था, जिसमें अपने पिता की तरह एक शासक वाले अच्छे गुण नहीं थे। इसकी क्रूरता का पता इस बात से चलता है कि इब्राहिम लोदी ने अपने शासनकाल में अपने ही सरदारों को क्रूरतापूर्वक मौत के घाट उतार दिया था। वहीं इसकी क्रूरता से इसका खुद का बेटा “दिलावर खाँ लोदी” भी नहीं बचा सका। भारत पर आक्रमण करने वाले काबुल के शासक बाबर ने वर्ष 1526 ईस्वी में पानीपत की प्रथम लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हरा कर इस वंश का अंत किया था।

आइए लोदी वंश के संस्थापक की विशेष उपलब्धियों पर नजर भी डालते है:

  • बहलोल लोदी को ‘लोदी वंश’ के उदार और कुशल शासक के रूप में देखा जाता है, जिसने लगभग 38 वर्षों तक शासन किया था।
  • बहलोल लोदी ने कृषि के विकास के लिए तालाबों-नहरों को भी बढ़ावा दिया था।
  • दिल्ली सल्तनत के रूप में तुर्को की निरंकुशता का अंत करके बहलोल लोदी ने सामंतों को समान अधिकार दिए थे।
  • अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंचने तक उसने अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार पंजाब से बिहार तक किया था।
  • मुद्रा व्यवस्था में अपना योगदान देते हुए बहलोल लोदी ने ¼ टंके के बराबर “बहलोली” नामक चांदी के सिक्कों को चलन में चलवाया था।
  • बहलोली नामक चांदी का सिक्का विनिमय का माध्यम बनकर मुग़ल शासक अकबर के समय तक प्रचलन में था।

लोदी वंश के शासन के पतन के कारण

आइए अभिलेखों के आधार पर लोदी वंश के पतन के कारणों को जानने का प्रयास करे….

1.ऐसा कहा गया है कि दौलत खान लोदी ने लोदी राजवंश के अंतिम उत्तराधिकारी इब्राहिम लोदी को गद्दी से हटाने के लिए सम्राट बाबर को आमंत्रित किया था।

2.दूसरी ओर, विभिन्न इतिहासकारों द्वारा यह कहा गया है कि इब्राहिम लोदी अति महत्वाकांक्षी था। अपनी ताकत का अधिक अनुमान लगाने के कारण इब्राहिम लोदी को राणा सांगा के साथ हार का सामना करना पड़ा।

3.आलोचकों के अनुसार लोदी वंश के अंतिम सम्राट में महान सेनापति होने का कोई गुण नहीं था। उतावले स्वभाव के होने के कारण, वह अपनी सीमाओं और ताकत का अनुमान लगाने में असमर्थ था।

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