कहती है यंहा की घटाए, तू कितना बल रखता है।
रुहेलखंड की धरती पर, तू कितना छल सहता है।
है तू पश्चिम का महानगर,तू है किनारा हिमालय का।
तू रामगंगा की बहती धारा हो,तुम हो प्रतिबिम्ब नाथ- आलय का।।
झुमकों के गिरने से यश प्राप्त किया, बरेली हो तुम यह जान लिया।
कितनों ने मुँह की खाई है, कितनो ने प्यास बुझाई है।।
बुद्ध ने आकर जहाँ, अपनी काया का पहचान दिया।
पाश्रर्वनाथ ने केवल्य प्राप्ति हेतु, बरेली को प्रस्थान किया।।
भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में स्थित बरेली जनपद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और राज्य राजधानी लखनऊ के राष्ट्रीय राजमार्ग के बीचों-बीच स्थित है। वर्तमान बरेली क्षेत्र प्राचीन काल में पांचाल राज्य का हिस्सा था। महाभारत के अनुसार तत्कालीन राजा द्रुपद तथा द्रोणाचार्य के बीच हुए एक युद्ध में द्रुपद की हार हुयी,जिसके परिणामस्वरूप पांचाल राज्य का दोनों के बीच विभाजन हुआ। इसके बाद यह क्षेत्र उत्तर पांचाल के अंतर्गत आया, जहाँ के राजा द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा मनोनीत हुये। अश्वत्थामा ने संभवतः हस्तिनापुर के शासकों के अधीनस्थ राज्य पर शासन किया। उत्तर पांचाल की तत्कालीन राजधानी, अहिच्छत्र के अवशेष बरेली जिले की आंवला तहसील में स्थित रामनगर के समीप पाए गए हैं। स्थानीय लोककथाओं के अनुसार गौतम बुद्ध ने एक बार अहिच्छत्र का दौरा किया था। यह भी कहा जाता है कि जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ को अहिच्छत्र में कैवल्य प्राप्त हुआ था।
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में, बरेली अब भी पांचाल क्षेत्र का ही हिस्सा था, जो कि भारत के सोलह महाजनपदों में से एक था। चौथी शताब्दी के मध्य में महापद्ममनन्द के शासनकाल के दौरान पांचाल मगध साम्राज्य के अंतर्गत आया, तथा इस क्षेत्र पर नन्द तथा मौर्य राजवंश के राजाओं ने शासन किया।क्षेत्र का अंतिम स्वतंत्र शासक शायद अच्युत था, जिसे समुद्रगुप्त ने पराजित किया था,फलस्वरूप पांचाल को गुप्त साम्राज्य में शामिल कर लिया गया था। छठी शताब्दी के उत्तरार्ध में गुप्त राजवंश के पतन के बाद इस क्षेत्र पर मौखरियों का प्रभुत्व रहा।
सम्राट हर्ष के समय 606 से 647 ईसवी के शासनकाल में यह क्षेत्र अहिच्छत्र भुक्ति का हिस्सा था। चीनी तीर्थयात्री ह्वेनत्सांग ने भी लगभग 635 ईसवी में अहिच्छत्र का दौरा किया था। हर्ष की मृत्यु के बाद इस क्षेत्र में अराजकता व भ्रम की स्थिति बनी रही।लेकिन कालांतर में लगभग 1500 ईसवी में क्षेत्र के स्थानीय शासक राजा जगत सिंह कठेरिया ने जगतपुर नामक ग्राम को बसाया था, जहाँ से वे शासन करते थे – यह क्षेत्र अब भी वर्तमान बरेली नगर में स्थित एक आवासीय क्षेत्र है। 1537 ईसवी में उनके पुत्रों, बांस देव तथा बरल देव ने जगतपुर के समीप एक दुर्ग का निर्माण करवाया, जिसका नाम उन दोनों के नाम पर बांस-बरेली पड़ गया। इस दुर्ग के चारों ओर धीरे धीरे एक छोटे से शहर ने आकार लेना शुरू किया।1569 ईसवी में बरेली मुगल साम्राज्य के अधीन आया, और अकबर के शासनकाल के दौरान यहाँ मिर्जई मस्जिद तथा मिर्जई बाग़ का निर्माण हुआ। इस समय यह दिल्ली सूबे के अंतर्गत बदायूँ सरकार का हिस्सा था।
शाहजहां के शासनकाल के दौरान बरेली के तत्कालीन प्रशासक, राजा मकरंद राय खत्री ने 1657 में पुराने दुर्ग के पश्चिम में लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर एक नए शहर की स्थापना की।इस शहर में उन्होंने एक नए किले का निर्माण करवाया, और साथ ही शाहदाना के मकबरे, और शहर के उत्तर में जामा मस्जिद का भी निर्माण करवाया।मकरंदपुर, आलमगिरिगंज, मलूकपुर, कुंवरपुर तथा बिहारीपुर क्षेत्रों की स्थापना का श्रेय भी उन्हें, या उनके भाइयों को दिया जाता है।1658 ईसवी में बरेली को बदायूँ प्रांत की राजधानी बनाया गया। औरंगजेब के शासनकाल के दौरान और उसकी मृत्यु के बाद भी क्षेत्र में अफगान बस्तियों को प्रोत्साहित किया जाता रहा। इन अफ़गानों को रुहेला अफ़गानों के नाम से जाना जाता था, और इस कारण क्षेत्र को रुहेलखण्ड नाम मिला।
औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद दिल्ली के मुगल शासक कमजोर हो गये और उस समय इस क्षेत्र में भी अराजकता फैल गयी तथा यहाँ के जमींदार स्वतन्त्र हो गये। इसी क्रम में, रुहेलखण्ड भी मुगल शासन से स्वतंत्र राज्य बनकर उभरा, और बरेली रुहेलखण्ड की राजधानी बनी। 1740ईसवी में अली मुहम्मद रुहेलखण्ड के शासक बने, और उनके शासनकाल में रुहेलखण्ड की राजधानी बरेली से आँवला स्थानांतरित की गयी। अली मुहम्मद के पश्चात उनके पुत्रों के संरक्षक, हाफ़िज़ रहमत खान रुहेलखण्ड के अगले शासक हुए।
1774 में शिराज्जुदौला और कंपनी की संयुक्त सेना ने हाफ़िज़ को हरा दिया, जो मीराँपुर कटरा में युद्ध में मारे गए, हालाँकि अली मुहम्मद के पुत्र, फ़ैजुल्लाह ख़ान युद्ध से बचकर भाग गए। कई वार्ताओं के बाद उन्होंने 1774 में ही शुजाउद्दौला के साथ एक संधि की, जिसके तहत उन्होंने सालाना 15 लाख रुपये, और 9 परगनों को अपने शासनाधीन रखा, और शेष रुहेलखण्ड वज़ीर को दे दिया।
1774 से 1800 तक रुहेलखण्ड प्रांत अवध के नवाब द्वारा शासित था। अवध राज में सआदत अली को बरेली का गवर्नर नियुक्त किया गया था।1801 ईसवी तक, ब्रिटिश सेना का समर्थन करने के लिए संधियों के कारण सब्सिडी बकाया हो गई थी। कर्ज चुकाने के लिए, नवाब सआदत अली खान ने 10 नवंबर 1801 को हस्ताक्षरित संधि में रुहेलखण्ड को ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया।
बरेली 1857 के विद्रोह का एक प्रमुख केंद्र था। मेरठ से शुरू हुए विद्रोह की खबर 14 मई 1857 को बरेली पहुंची। इस समय उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में दंगे हुए, और बरेली, बिजनौर और मुरादाबाद में मुसलमानों ने मुस्लिम राज्य के पुनरुद्धार का आह्वान किया।अंग्रेजी निशान उतार फेंककर बरेली में स्वतंत्रता का हरित ध्वज फहराते ही नेटिव तोपखाने के मुख्य सूबेदार बख्त खान ने सारी नेटिव सेना का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। फिर उन्होंने अंतिम रुहेला शासक हाफ़िज़ रहमत खान के पोते, खान बहादुर खान के नाम का जयघोष करके दिल्ली के बादशाह के सूबेदार की हैसियत से रुहेलखंड का शासन भी अपने हाथ में लिया।
अलग-अलग आरोपों के कारण इन सभी को फांसी का दंड सुनाया गया और छह यूरोपियन लोगों को तुरंत फांसी पर चढ़ा दिया गया। इस तरह अपना सिंहासन पक्का जमाने के बाद खान बहादुर ने सारा रुहेलखंड स्वतंत्र होने का समाचार दिल्ली भेजा और फिर बख्त खान के नेतृत्व में सभी सैनिक दिल्ली की ओर चल दिए। विद्रोह के सफल होने के बाद पहली जून को विजय जुलूस निकाला गया और कोतवाली के समीप एक ऊंचे चबूतरे पर खान बहादुर खान को बैठाकर उनकी ताजपोशी की गई, और जनता की उपस्थिति में उन्हें बरेली का नवाब घोषित कर दिया गया। इसके बाद खानबहादुर ने सारा रुहेलखंड स्वतंत्र हो जाने का समाचार दिल्ली भेजा। 11 माह तक बरेली आजाद रहा। इस अवधि के दौरान खान बहादुर खान ने शोभाराम को अपना दीवान बनाया, 1 जून 1857 को बरेली में फौज का गठन किया गया, और स्वतंत्र शासक के रूप में बरेली से चांदी के सिक्के जारी किए।
परिमाणस्वरूप 1857 का विद्रोह बरेली में भी विफल हो गया। 1 जनवरी 1858 को उन्हें मुकदमे के लिए बरेली लाकर छावनी में रखा गया।मुकदमा 1 फरवरी को शुरू हुआ, जिसमें उन्हें मौत की सजा सुनाई गई और 24 फरवरी 1860 को कोतवाली में फांसी दे दी गई। उन्हें पुरानी जिला जेल के सामने दफन किया गया जहां आज भी उनकी मजार है। खान बहादुर खान के अतिरिक्त 257 अन्य क्रांतिकारियों को भी कमिश्नरी के समीप एक बरगद के पेड़ के नीचे फांसी दे दी गयी।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के खिलाफत संघर्ष में बरेली का विशेष योगदान रहा है। महात्मा गाँधी ने उस समय 2 बार बरेली यात्रा की थी। गांधी जी के सविनय अवज्ञा आन्दोलन का बरेली में प्रचुर असर देखा गया | आचार्य नरेंद्र देव की अध्यक्षता में कांग्रेस की कई सभाए की गयी। कई गणमान्य नेता यथा जवाहर लाल नेहरु, रफ़ी अहमद किदवई, महावीर त्यागी, मंज़र अली इत्यादि स्वतंत्रता संग्राम में बरेली की जेल में रहे है।
भौगोलिक रूप से इस जिले का क्षेत्रफल 4120 वर्ग किलोमीटर है जिसके उत्तर में उत्तराखण्ड का रुद्रपुर जिला व दक्षिण में बदायूँ और शाहजंहापुर की सीमा तथा पश्चिम में रामपुर व चंदौसी जिले की सीमा और पूर्व में पीलीभीत की सीमा का वृहद जाल दिखाई देता है।2011 की जनगणना के अनुसार इस जिले की जनसंख्या लगभग 44 लाख 48 हजार 3 सौ 59 है जँहा पर सभी धर्मो के लोग आपसी सहिष्णुता के साथ रहते है बरेली उत्तरी भारत में मध्य उत्तर प्रदेश राज्य में रामगंगा नदी तट पर स्थित है। यह नगर रुहेलों के अतीत गौरव का स्मारक है।
प्रशासनिक देख-रेख के हिसाब से यह जिला 1 लोक सभा, 9 विधानसभा, 1 नगर निगम , 20 नगरपालिका, 15 विकास खण्ड, 2070 गाँवो तथा 5 तहसीलों के क्रमबध्य जाल में बंधा हुआ है।
यह शहर कृषि उत्पादों का व्यापारिक केंद्र है और यहाँ कई उद्योग जैसे चीनी प्रसंस्करण, कपास ओटने और गांठ बनाने आदि की मिले तथा निकट में दियासलाई, लकड़ी से तारपीन का तेल निकालने के कारख़ाने भी मौजूद हैं। यहाँ पर सूती कपड़े की मिलें तथा गन्धा बिरोजा तैयार करने के कारख़ाने भी सहजता से मिल जाते है।बरेली को ‘बाँसबरेली’ भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ लकड़ी, बाँस आदि का कारोबार काफ़ी लम्बे समय से हो रहा है। एक कहावत ‘उल्टे बाँस बरेली’ भी इस स्थान पर बाँसों की प्रचुरता को सिद्ध करती है। लकड़ी के विभिन्न प्रकार के सामान और फर्नीचर आदि के लिए भी बरेली प्रसिद्ध है।
इस जनपद का शहर महानगरीय है। यह उत्तर प्रदेश में आठवां सबसे बड़ा महानगर और भारत का 50वां सबसे बड़ा शहर है। धार्मिक महत्व के चलते बरेली का खास स्थान है। नाथ सम्प्रदाय के प्राचीन मंदिरों से आच्छादित होने के कारण बरेली को नाथ नगरी भी कहा जाता है। शहर में विश्व प्रसिद्ध दरगाह आला हजरत स्थापित है,जो सुन्नी बरेलवी मुसलमानों की आस्था का प्रमुख केंद्र है।इसलिए बरेली को “बरेली शरीफ” या “शहर ए आला हज़रत” भी कहते हैं।ख्वाजा क़ुतुब भी यहीँ के है। और खानकाह नियाजिया भी इसी शहर में है। और तो और राधेश्याम रामायण के प्रसिद्ध रचयिता पंडित राधेश्याम शर्मा कथावाचक इसी शहर के थे। मठ तुलसी स्थल भी इसी शहर में है। देश-प्रदेश के प्राचीन और प्रमुख महाविद्यालयों में शुमार बरेली कॉलेज का भी ऐतिहासिक महत्व है। देश के भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान और भारतीय पक्षी अनुसंधान संस्थान इस शहर के इज्जतनगर में बड़े कैंपस में स्थापित हैं। बॉलीवुड फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री प्रियंका चौपड़ा और पर्दे की कलाकर दिशा पटानी बरेली से ही हैं।चंदा मामा दूर के…जैसी बाल कविता के रचयिता साहित्यकार निरंकार देव सेवक भी बरेली के ही थे। बरेली पत्रकारिता के शीर्ष स्तम्भ चन्द्रकान्त त्रिपाठी की कर्मस्थली है।
बरेली में लगने वाले प्रमुख मेलों में रामगंगा का चौबारी मेला, बरेली क्लब में लगने वाला उत्तरायणी मेला, नरियावल का मेला और कैण्ट का दशहरा मेला इत्यादि प्रमुख हैं।बरेली स्वाल के लिए प्रसिद्ध है। ” स्वाल ” एक ऐसा व्यंजन है जो बरेली का सबसे प्रसिद्ध व्यंजन है। आमतौर पर लोग इसे नाश्ते मे खाते है| यह मुख्य रूप से बेसन द्वारा बनाया जाता है और मैश किए हुए आलू के चोखे के साथ परोसा जाता है।
पर्यटन के दृष्टिकोण से इस जिले में ऐसे अनेको धरोहर सहजता से दिख जाते है जिसका दीदार करने का मन बार-बार करता है तो आइए अब हम आप सभी व्यूवर को बरेली घुमाते है और बेरली के स्मारकों को जानने का सफल प्रयास करते है।
बरेली अपने मंदिरो के लिए, विशेष रूप से चार शिव मंदिरो के लिए जाना जाता है। जो क्रमशः घोपेश्वरनाथ (यह मन्दिर सदर बाजार में स्थित बहुत खूबसूरत है एवं यह भगवान शिव को समर्पित है), मणिनाथ , त्रिवटीनाथ और अलखनाथ( अलखनाथ भगवान शिव को समर्पित यह शहर का सबसे बड़ा मंदिर है इस मंदिर में कई बगीचे एवं मुख्य द्वार पर भगवान हनुमान की विशाल प्रतिमा लगी हुई है)
लक्ष्मी नारायण मंदिर भी देखने लायक है। बरेली मे कुछ मनोरंजन पार्क जैसे फन सिटी और बूंड मनोरंजन और वाटर पार्क स्थित है। यहाँ देखने के लिए कुछ अच्छे स्थान है- जैसे कि फूलबाग फव्वारा और चिल्ड्रन पार्क दोनो ही छावनी क्षेत्र मे स्थित है। अन्य प्रसिद्ध उद्यान भी है जैसे सिविल लाइंस मे कंपनी बाग और किला क्षेत्र मे लिचिबाग। स्लाइड और एक पारिवारिक पिकनिक का आनंद लेने के लिए एक शानदार जगह है। कुछ अन्य धार्मिक स्थलो मे दरगाह ए ‘आला – हजरत, बीबी जी की मस्जिद और श्री साईं मंडी शामिल हैं। जो लोग शहर के इतिहास मे रुचि रखते हैं वे पंचला संग्रहालय और सेना सेवा कोर संग्रहालय का दौरा कर सकते है।







