प्रथम स्वतंत्रता संग्राम-1857 को प्रथम भारतीय विद्रोह, प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और सिपाही विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है। यह ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक सशस्त्र विद्रोह था, जो दो वर्षों तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में चला। इस विद्रोह का आरंभ मेरठ के छावनी क्षेत्रों में छोटी सी झड़पों व आगजनी से शुरू हुआ और पूरे देश में फैल गया। जवाबी कार्यवाही में ब्रिटिश हुकूमत काफी मशक्कत के बाद क्रांति का दमन करने में सफल तो हो गई, लेकिन उसे ईस्ट इंडिया कंपनी का क्राउन के साथ विलय समेत भारत में ब्रिटिश इण्डिया के संदर्भ में कई बदलाव करने पड़े।
प्रथम स्वंतत्रता संग्राम अर्थात 1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश अधिकारी पहले से ज्यादा सजग हो गए और उन्होंने आम भारतीयों के साथ संवाद बढ़ाने की कोशिशें शुरू कर दीं। प्रथम दृष्टया उन्होंने विद्रोह करने वाली सेना को भंग कर दिया। और प्रदर्शन की क्षमता के आधार पर सिखों और बलूचियों की सेना की नई पलटनें बनाई गईं। जो भारत की स्वतंत्रता तक कायम रही। तो दूसरी तरफ क्रांति में शामिल नहीं होने वाले रियासतों के मालिकों और जमींदारों को लॉर्ड कैनिंग ने ‘तूफान में बांध’ की संज्ञा देते हुए ब्रिटिश शासन की ओर से सम्मानित भी किया। उन्हें आधिकारिक रूप से अलग पहचान और ताज दिया गया। कुछ बड़े किसानों के लिए भूमि-सुधार कार्य भी किए गए। इतिहासकार राधिका सिंह के अनुसार 1857 के बाद औपनिवेशिक सरकार को मजबूत किया गया और अदालती प्रणाली के माध्यम से अपनी बुनियादी सुविधाओं का विस्तार, कानूनी प्रक्रिया और विधि को स्थापित किया।
इतिहासकार राधिका सिंह के मुताबिक, नई कानून व्यवस्था में पुराने ताज और ईस्ट इंडिया कंपनी का विलय कर दिया गया। साथ ही नई दीवानी और फौजदारी प्रक्रिया को नए दंड संहिता के रूप में प्रस्तावित किया गया, जो पूरी तरह से ब्रिटिश कानून पर आधारित थी।
सरकार ने 1860 से लेकर 1880 के दशकों में जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र, संपत्ति दस्तावेज और अन्य कार्यों से संबंधित प्रमाण पत्र अनिवार्य कर दिए। जिसका उद्देश्य स्थायी, सार्वजनिक रिकॉर्ड और निरीक्षण योग्य पहचान का डेटा तैयार करना था। वस्तुतः पहली अखिल भारतीय जनगणना 1868 से 1871 तक हुई। इसमें व्यक्तिगत नामों के बजाय घर में महिलाओं की कुल संख्या के आधार पर गणना की गई। वहीं, भारत में साम्राज्यवादी सत्ता को मजबूत करने के लिए कई दूसरे कदम भी उठाए गए। जिसके तहत् 2 अगस्त 1858 को ब्रिटिश संसद ने एक एक्ट पारित किया। इसे भारत सरकार अधिनियम 1858 नाम दिया गया।
इसके तहत भारत का शासन ब्रिटिश क्राउन के हाथों में चला गया और भारत के ऊपर इंग्लैंड की संसद का सीधा नियंत्रण हो गया।
ब्रिटिश संसद में ईस्ट इंडिया कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर और बोर्ड ऑफ कंट्रोल को समाप्त कर भारतीय प्रशासन के बेहतर क्रियान्वयन के लिए भारतीय सचिव की नियुक्ति की गई। जो महारानी के प्रति जवाबदेह होता था। इसकी सहायता के लिए 15 सदस्यों की एक ‘मंत्रणा परिषद्’ बनाई गई। इन 15 सदस्यों में 8 की नियुक्ति सरकार और 7 की ‘कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स’ द्वारा चुनने की व्यवस्था की गई। और भारत के गवर्नर जनरल को वायसराय कहा जाने लगा।
साथ ही यह भी घोषणा की गई कि भारतीयों को प्रशासनिक सेवाओं में बराबर मौके दिए जाएंगे। किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। भारतीय राजाओं के अधिकारों को सुरक्षित रखने के साथ क्वीन विक्टोरिया ने अपनी तरफ से संधियों के पालन करने का वादा किया। साथ ही अंग्रेजों के साम्राज्य विस्तार पर भी लगाम लग गया। क्वीन विक्टोरिया ने वादा किया कि वह अपने राज्य क्षेत्र या अधिकारों का अतिक्रमण नहीं करेंगी। साथ ही सरकार में धार्मिक शोषण खत्म करने और सरकारी सेवाओं में बिना भेदभाव के नियुक्ति की बात भी की। हालांकि इसके बाद अंग्रेजों ने आर्थिक शोषण की चालबाजियां शुरू कर दी।
इसी के साथ भारत ब्रिटिश कॉलोनी बन गया। लॉर्ड कैनिंग भारत के पहले वायसराय नियुक्त किए गए। 1 नवंबर 1858 को इस एक्ट को लागू कर दिया गया। 1864 से 1869 के दौरान वायसराय रहे जॉन लॉरेंस ने भारतीय सेना का फिर से गठन किया। रानी और ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों को आपस में मिला दिया गया। इस क्रांति से अंग्रेज इतने डर गए कि उन्होंने सैन्य पुनर्गठन के आधार पर यूरोपीय सैनिकों की संख्या भारत में बढ़ाना शुरू कर दिया। साथ ही उच्च सैनिक पदों पर भारतीयों की नियुक्ति को बंद कर दिया गया। तोपखाने पर पूरी तरह से अंग्रेजी सेना का अधिकार हो गया। इसके अलावा बंगाल प्रेसीडेंसी के लिए सेना में भारतीय और अंग्रेज सैनिकों का अनुपात 2:1 एवम् मद्रास और बम्बई प्रेसीडेंसियों में यह अनुपात 3:1 कर दिया गया। भारत के उच्च जाति के लोगों की सेना में भर्ती पूरी तरह बंद कर दी गई। साथ ही भारतीयों के प्रशासन में प्रतिनिधित्व के क्षेत्र में अल्प प्रयास के अंतर्गत साल 1861 में ‘भारतीय परिषद अधिनियम’ को पारित किया गया। जिसके बाद भारतीय लोगों का भरोसा उनसे उठने लगा।
साल 1857 की क्रांति का धार्मिक दृष्टिकोण पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। भारत में 1857 तक मुगल साम्राज्य का बचा खुचा अस्तित्व खत्म हो गया था। अंग्रेज खुलेआम ईसाइयत का प्रचार-प्रसार कर रहे थे, जो लोग इसे कबूल करते उन्हें कर में राहत मिलती थी। हालांकि इस क्रांति के बाद अंग्रेजों का यह मिशन धीमा पड़ गया, वे गांवों में जाने से डरने लगे।







